Shikha Arora

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लेखनी प्रतियोगिता -22-Jun-2022 - घर की याद


घर की याद बड़ा सताती है,
परदेसियों को रुलाती है।
जब भी आती घर से चिट्ठी,
दिल को ख़ुशबू से महकाती हैं।
मां -बाबा हो या भाई- बहन,
परिवार की याद होती है ज़हन।
खाने की खुशबू न भूले कभी,
कैसे करूं मैं यह सब अब सहन।
छोड़ा था बाबुल का मैंने अंगना,
साजन ने जब पहनाए थे कंगना।
यादों को अपने दिल में बसाकर, 
चली थी लेकर पिया का शगना।
सालो हो गए ससुराल चली आई,
बाबुल के घर से हो गई गुड़वांई।
घर की याद भूले से भी न भूली,
सासरे में बदरी सी बनकर मैं छाई।
प्यार सबका मिला यहां भरपूर,
बेल पर जैसे लगते खट्टे मीठे अंगूर।
घर की याद जब तब आ ही जाती,
मन में फैलाती जैसे सुगंधित कपूर।
घर में मेरे वो एक छोटा सा पौधा,
बाबुल ने मिलकर साथ मेरे था बोया।
याद आज भी बहुत आता है वो तो,
प्यार उसका मैंने कभी नहीं खोया।।


दैनिक प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)

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4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

23-Jun-2022 10:41 AM

बेहतरीन रचना

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Abhinav ji

23-Jun-2022 07:45 AM

Nice

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Swati chourasia

23-Jun-2022 06:20 AM

बहुत खूब 👌

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